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उमा भारती का बयान, रेस्ट हाउस में नहीं मिलता था कमरा, छाया तक से भागते थे प्रशासनिक अधिकारी

भोपाल
ब्यूरोक्रेसी से चप्पल उठाने के बयान को लेकर अचानक चर्चा में आई पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मंगलवार को एक के बाद 18 ट्वीट कर इस मामले में फिर नया मोड़ दिया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि एक दौर ऐसा भी था कि अफसर उन्हें रेस्ट हाउस में कमरा तक नहीं देते थे और प्रशासनिक अधिकारी उनकी छाया तक से भागने लगे थे। पढ़िए...... अलग-अलग ट्वीट में उमा भारती ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर दिए गए बयान पर रविवार को क्या बातें कहीं ?

शराब बंदी से जोड़ा बयान को

उमा ने ट्वीट कर कहा कि 18 सितम्बर, 2021 को मेरे निवास पर हुई प्रेस कॉन्फ्रेन्स में, 15 जनवरी, 2022 के बाद शराब बन्दी के अभियान में मेरी स्वयं की भागीदारी के संबंध में घोषणा के बाद मैं आशंकित थी कि इस मुद्दे की शक्ति कम करने के लिये कुछ घट सकता है और मेरी आशंका सच्चाई में बदल गयी। ब्यूरोक्रेसी पर मेरे दिए गए बयान पर मीडिया ने कोई तोड़-मरोड़ नहीं किया किन्तु मीडिया तक बयान को प्रभावी रूप से पहुँचाने का समय 20 तारीख़ को चुना गया। मैं मध्य प्रदेश में शराब बन्दी के अपने परम लक्ष्य से लोगों का ध्यान हटने ही नही दूँगी। इसलिए मैंने असंयत भाषा के प्रयोग को ज्यों का त्यों स्वीकार करते हुए अपना रंज व्यक्त किया।

चप्पल के बयान में बहस को आगे बढ़ाऊंगी

उमा भारती ने कहा कि मैंने अपनी टिप्पणी में मेरी नहीं बल्कि हमारी यानी बहुवचन का प्रयोग किया है। मैं तो किसी को अपने पांव भी नहीं छूने देती तो किसी से मेरी चप्पल उठाने की बात कैसे कह सकती हूँ किन्तु ब्यूरोक्रेसी पर दिये गये बयान से एक सार्थक विचार-विमर्श निकल सकता है जो कि नए प्रशासनिक सेवा में भर्ती हुए युवाओं के काम आ सकता है। इसलिये अब मैं इस बहस को भी आगे चलाऊँगी, क्योंकि यह देश के लोकतंत्र एवं विकास के लिए आवश्यक है।

पटवा सरकार में मना करने पर भी घर आते थे अफसर

उमा के अनुसार मेरे अनुभवों के कुछ विवरण आपको देती हूँ कि 1990 में मध्यप्रदेश में जब पटवा सरकार बनी एवं मैं खजुराहो से सांसद थी तो मेरे मना करने पर भी कलेक्टर, एसपी मेरे घर ही आ जाते थे जबकि मैं रेस्ट हाउस में मिलने का सुझाव देती थी।

अयोध्या घटना के बाद बदल गया तरीका

उन्होंने कहा कि फिर 6 दिसम्बर के अयोध्या की घटना के बाद हमारी सरकार के गिरते ही मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस की सरकार बन गयी। फिर तो अधिकारियों का बोलना, मिलना, चलना और सबका तरीक़ा ही बदल गया। मुझे इस पर आश्चर्य हुआ किन्तु परेशानी नहीं हुई क्योंकि मैं तो जनहित के काम, जनता की शक्ति की कृपा से ही करवा लेती थी।

पीकदान की जगह फ़ाइल और कलमदान से चलने कहा

सन 2000 में मैं जब केंद्र में अटलजी के साथ पर्यटनमंत्री थी तब बिहार में वहाँ की मुख्यमंत्री तबकी राबड़ीदेवी और उनके पति लालू यादव के साथ मेरा पटना से बोधगया हेलिकॉप्टर से जाने का दौरा हुआ। हेलिकॉप्टर में हमारे सामने की सीट पर बिहार राज्य के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी बैठे हुए थे।
लालू यादव ने मेरे ही सामने अपने पीकदान में ही थूका एवं उस वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के हाथ में थमाकर उसको खिड़की के बग़ल में नीचे रखने को कहा और उस अधिकारी ने ऐसा कर भी दिया। इसलिये 2005-06 में जब मुझे बिहार का प्रभारी बनाया गया और बिहार के पिछड़ेपन के साथ मैंने पीकदान को भी मुद्दा बनाया एवं पूरे बिहार के प्रशासनिक अधिकारियों से अपील की आज आप इनका पीकदान उठाते हो, कल हमारा भी उठाना पड़ेगा। अपनी गरिमा को ध्यान में रखो तथा पीकदान की जगह फ़ाइल और कलमदान से चलो।

रेस्ट हाउस में कमरा भी नहीं मिलता था

उमा ने ट्वीट कर कहा कि बिहार की सत्ता पलट गयी, मैं नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद की शपथ के बाद लौटी, मध्यप्रदेश में बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री थे किन्तु मेरे घर पर लगभग सभी अधिकारियों की भीड़ लगी रहती थी, इससे मुझे शर्मिंदगी होती थी। बिहार से आते ही मुझे पार्टी से निकाल दिया गया। गौर भी हट गये। फिर तो मुझे मध्यप्रदेश में किसी रेस्ट हाउस में कमरा मिलना भी मुश्किल हो गया। प्रशासनिक अधिकारी तो मेरे छाया से भागने लगे। मेरे लिए तो यह हँसी एवं अचरज की बात थी क्योंकि तिरंगे के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ते ही मैं पूर्व मुख्यमंत्री हो गयी थी किन्तु मेरे पार्टी से बाहर निकाले जाते ही अधिकारियों की रंगत ही बदल गयी।
 मुझे इससे भी कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि ईश्वर एवं पब्लिक की कृपा मुझ पर हमेशा रही है। मैं तो हमेशा बादशाह हूँ या हमेशा फ़क़ीर हूँ किन्तु ऐसी बातें लोकतंत्र के लिए घातक हैं क्योंकि प्रशासनिक सेवा के लोगों को नियम से बंधना है तथा जो जनता के वोट से चुनाव जीत के सत्ता में आया है, उसकी नीतियों का क्रियान्वयन करना है किन्तु सत्तारूढ़ दल की राजनीति साधने का कार्यकर्ता नहीं बनना है लेकिन यह निर्णय देश के, सभी राज्यों के ब्यूरोक्रेट्स को करना होगा कि वह शासन के अधिकारी, कर्मचारी एवं जनता के सेवक हैं किन्तु वह किसी राजनीतिक दल के घरेलू नौकर नही हैं।

निकम्मे नेताओं के लिये रक्षा कवच भी बताया

उमा भारती ने कहा कि यह जुमला, “अफ़सरशाही देश नहीं चलने देती“, कई निक्कमे सत्तारूढ़ नेताओं के लिए रक्षा कवच का काम करता है। क्या आपने कभी हमारे प्रधानमंत्री मोदी के मुँह से ऐसी बात सुनी है ? उन्होंने तो पहले गुजरात में मुख्यमंत्री के तौर पर फिर देश के प्रधानमंत्री के तौर पर सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सहयोग एवं उपयोग से देश को कई बड़े संकटो से उबार लिया। मैं स्वयं अटलजी के साथ जब 36 साल की थी तब से केंद्र में 6 साल तक मंत्री रही फिर मुख्यमंत्री बनी, फिर पीएम मोदी के साथ फिर दोबारा 5 साल मंत्री रही। सब प्रकार के अधिकारियों से वास्ता पड़ा किन्तु ईमानदार एवं नियम पालन करने में पूरे देश विशेषकर मध्यप्रदेश के ब्यूरोक्रेट की व्यावहारिक संगत मुझे मिली तथा उनके प्रति सम्मान की अमिट छाप मेरे हृदय में है।

आत्मग्लानि महसूस की असंयत भाषा पर

उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी पर बोली असंयत भाषा पर मैंने आत्मग्लानि अनुभव की और उसे व्यक्त भी किया किन्तु मेरे भाव बिलकुल सही थे। मैं देश की सभी पुराने एवं नये ब्यूरोक्रेसी से 3 अपील करूँगी कि आपको अपने पूर्वजों, माता पिता, ईश्वर की कृपा एवं अपनी योग्यता से यह स्थान मिला है, भ्रष्ट अफसर एवं निक्कमे सत्तारूढ़ नेताओ के गठजोड़ से हमेशा दूर रहिये। आप शासन के अधिकारी, कर्मचारी हैं किन्तु किसी राजनीतिक दल के घरेलू नौकर नहीं हैं, देश के विकास एवं स्वस्थ लोकतंत्र के लिए तथा गरीब आदमी तक पहुँचने के लिये आप इस जगह पर बैठे हैं, इस पर ध्यान रखिये।



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