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पार्टी में अशांति, भ्रम में दिग्विजय- राकेश शर्मा

राजनीति, स्वभाव से, एक सतत परिवर्तनशील, ज्वलंत और विकसित होने वाला विषय है। किसी राजनीतिक व्यवस्था के कामकाज की भविष्यवाणी शायद ही कभी की जा सकती है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह पर्याप्त कारण है कि वह इस तरह के गतिशील परिदृश्य में उत्तरदायी कार्रवाई और अपने विचारों के सुनियोजित क्रियान्वयन के लिए हमेशा तैयार रहे। एक राजनीतिक दल द्वारा किये गए कार्य, विशेष रूप से जो सत्ता में हो, या तो राज्य के लोगों में विश्वास पैदा करता है या फिर उन्हें अराजकता की स्थिति में लाकर खड़ा कर देता है।

हाल ही में, हमने राज्य स्तर पर भारतीय राजनीति में इस घटना का एक उपयुक्त उदाहरण देखा है। देश के दो काफी बड़े राज्यों, गुजरात और पंजाब, ने अपने मुख्यमंत्रियों को उनके कार्यकाल को पूरा करने से पहले ही बदलते हुए देखा है। दिलचस्प बात यह है कि इन दो राज्यों में भारत की दो सबसे बड़ी पार्टियों का शासन है - गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा और पंजाब में कांग्रेस का शासन। गुजरात के मुख्यमंत्री का बदलना एक सहज प्रक्रिया थी, जिसे मुश्किल से थोड़ी ही मीडिया कवरेज मिली, जबकि पंजाब के मुख्यमंत्री का बदलना अराजकता, अव्यवस्था और पूरी तरह से कुप्रबंधन से ग्रसित रहा। यहाँ तक कि अभी भी मंत्रीमंडल में इस्तीफों और फेर-बदल का क्रम जारी है। यह भारतीय राजनीति में राज्य और केंद्र दोनों में एक एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में चर्चा में है।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, द्वारा पंजाब में उथल-पुथल को कवर करने वाले मीडिया के खिलाफ और गुजरात में भाजपा की संचालित सरकार द्वारा सुचारू रूप से कामकाज को सुनिश्चित करने के समाचारों के कवरेज सम्बन्धी निराधार बयान और आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि मीडियाकर्मी बीजेपी के कठपुतली के रूप में व्यवहार कर रहे हैं और गुजरात के सीएम विजय रूपानी के बदले जाने पर बीजेपी को सकारात्मक कवरेज प्रदान कर रहे हैं लेकिन पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को बदले जाने को नकारात्मक रूप से दिखाया जा रहा है।

दिग्विजय सिंह के कथन बस आरोप मात्र हैं। वे बेतुके, निराधार और जनता को भ्रमित करने के प्रयास हैं। दिग्विजय सिंह इस बात को समझने में विफल रहे हैं कि पत्रकार अपनी नैतिक जिम्मेदारी के तहत सच्चाई और निष्पक्षता के साथ रिपोर्टिंग करते हैं, और यह व्यवहार उन कईं राजनेताओं से अलग है, जो निहित स्वार्थपूर्वक राजनीति करते हैं। इस तरह के राजनीतिक और प्रशासनिक हंगामे के बीच जनता का भविष्य ही अनिश्चितता के घेरे और अधर में है। इसलिए ज़मीनी हकीकत यह है कि जनता सच्चाई को जानने की हकदार है। दिग्विजय के तर्क और आरोपों का कोई भी औचित्य नहीं है और एक दिग्गज राजनीतिज्ञ के रूप में उनके कद के अनुकूल नहीं है।

दिग्विजय सिंह यह भी देखने और स्वीकार करने में विफल रहे हैं कि भाजपा ने कुछ ही हफ्तों में एक मौजूदा मुख्यमंत्री के दूसरे मुख्यमंत्री से बदले जाने के काम को बहुत ही सुचारू रूप से अंजाम दिया है। यह एक सुनियोजित और व्यवस्थित दृष्टिकोण का प्रतिबिंब है। जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, यह प्रभावी प्रशासन की पहचान है और एक राजनीतिक दल के भीतर वैचारिक और रणनीतिक संतुलन का उत्कृष्ट उदाहरण है। दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी के इसी तरह के एक कदम ने इतनी अव्यवस्था पैदा कर दी है कि यह अविश्वास और पार्टी के भीतर के संतुलन की कमी का कारण बन गया है जिससे पंजाब की जनता का प्रदेश सरकार और प्रशासन से विश्वास ख़त्म होने के कगार पर आ गया है।

दिग्विजय सिंह को इस बात की बेहतर जानकारी होनी चाहिए। मैं जानना चाहता हूँ कि वह 2020 में अपने गृह राज्य मध्यप्रदेश में अपनी आंखों के सामने हुए बदलाव को कैसे नकार सकते हैं। जब कमलनाथ सरकार का पतन और चौथी बार शिवराज सिंह चौहान सरकार का गठन हुआ था। जिस राजनीतिक संकट के कारण यह हुआ, वह किसी बाहरी व्यक्ति का काम नहीं था बल्कि उन्हीं की पार्टी के भीतर की अव्यवस्था, सम्मान की कमी, वैचारिक और रणनीतिक मतभेद और असंतुलन के कारण हुआ था। फिर भी, भाजपा नेतृत्व ने अपनी ज़बरदस्त क्षमता दिखाई और शिवराज सरकार को स्थापित करने के लिए एक सुचारू और सहज प्रक्रिया को सुनिश्चित किया। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि मध्यप्रदेश 'प्रेरणा और प्रगति के पथ' पर नई ऊंचाइयों को छूता रहे।

इन्हीं विचारों और तर्कों को ध्यान में रख कर मैं नम्रतापूर्वक पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सलाह देना चाहता हूँ कि वे अपनी निद्रा से उभर कर, काल्पनिक दुनिया से बहार निकलें, जिससे वास्तविक दुनिया की यह घटनायें उनको भी स्पष्ट रूप से दिखने लगें।

-राकेश शर्मा
-लेखक भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं।
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