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जय घोष के साथ निकली बाबा रामदेव की पालकी यात्रा

भोपाल।
 बाबा रामदेव दरबार मंदिर रुणिचा धाम सेवा समिति की ओर से कोलार की राजहर्ष कॉलोनी के बाबा रामदेव मंदिर में राजस्थान के लोक देवता श्री बाबा रामदेव का जन्मोत्सव धूमधाम से  मनाया गया। मंदिर परिसर से बाबा के बाल स्वरूप की पालकी यात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं कलश लेकर चल रही थीं। 
मंदिर के पुजारी राजेश गुरु ने बताया कि जन्मोत्सव का प्रारंभ 28 अगस्त को शाम सात बाजे से सुंदरकांड, भजन-कीर्तन और जागरण के कार्यक्रम के साथ हुआ था, जिसमें शहर के कई जाने-माने भजन गायकों ने प्रस्तुतियां दीं। दूसरे दिन 29 अगस्त को सुबह नौ बजे पालकी यात्रा निकाली गई, जो बाबा के जय घोष के साथ मंदिर प्रांगण से प्रारंभ होकर विभिन्न मार्गों से गुजरती हुई नयापुरा स्थित बीजासेन मंदिर पहुंची। वापस परामदेव मंदिर पहुँचने पर इसका समापन हुआ। मंदिर में दिनभर पूजा-अर्चना के साथ कन्या भोज एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।   

बाबा श्री रामदेव की जीवन गाथा 

माना जाता है कि बाबा श्री रामदेव ने 1409 ई में हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक भादवे की बीज (भाद्रपद शुक्ल द्वितीया के दिन रुणिचा के शासक अजमल के घर जन्म लिया था। इनकी माता का नाम मैणादे था। इनके एक बड़े भाई का नाम विरमदेव था। तोमर वंशीय राजपूत में जन्म लेने वाले बाबा श्री रामदेव के पिता अजमल निसंतान थे। सन्तान सुख प्राप्ति के लिए उन्होंने द्वारकाधीश की भक्ति की। उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् ने वरदान दिया था कि वे स्वयं उनके घर बेटा बनकर अवतरित होंगे। लोक देवताओं में श्रीरामदेव का नाम अत्यधिक लोकप्रिय है। बाबा श्री रामदेव सिद्ध संत, शूरवीर, चमत्कारी, कर्तव्यपरायण, जनता के रक्षक और गौ सेवक के रूप में प्रसिद्ध हुए। रामदेव ने जाति व्यवस्था का विरोध करते हुए सामाजिक समसरता का संदेश दिया। रामदेव ने जीव मात्र के प्रति दया, गुरु महिमा, पुरुषार्थ एवं मानव के गौरव को महत्व दिया। वे समाज सुधारक थे। समाज में अछूत कहे जाने वाले वर्ग के साथ बैठकर भजन करना, दलित डालीबाई का बहिन के रूप में पोषण करना, धार्मिक आडम्बरों का विरोध करना तथा हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल देना आदि रामदेवजी के प्रमुख कार्य थे।

बाबा रामदेव की समाधि 

मात्र तैंतीस वर्ष की अवस्था में चमत्कारी बाबा रामदेव ने समाधि लेने का निश्चय किया। समाधि लेने से पूर्व अपने मुताबिक स्थान बताकर समाधि को बनाने का आदेश दिया। उसी वक्त उनकी धर्म बहिन डालीबाई आ जाती हैं। उन्होंने भाई से पहले इसे अपनी समाधि बताकर समाधि ले ली। डालीबाई के पास ही बाबा रामदेव की समाधि खुदवाई गई। हाथ में श्रीफल लेकर सभी ग्रामीण लोगों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर वे उस समाधि में बैठ गये और बाबा रामदेव के जयकारे के साथ सदा अपने भक्तों के साथ रहने का वादा करके अंतर्ध्यान हो गए। 
 
पोकरण के पास है रामदेवरा 

परमाणु परीक्षण के कारण विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुके पोकरण कस्बे से 12 किमी. उत्तर दिशा में स्थित विख्यात नगरी रूणिचा धाम जिसे लोग रामदेवरा कहते हैं, वहां पर प्रति वर्ष भादवा महीने की शुक्ला द्वितीया से अंतर प्रांतीय मेला शुरू होता है, यह मेला दूज से एकादशी तक लगता है। बाबा रामदेव का जन्म स्थान उन्डू कश्मीर हैं, जो बाड़मेर जिले में स्थित है। वहां पर बाबा रामदेव का विशाल मन्दिर है।
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