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जामवाल की खरी-खरी, कहा था-दस-दस साल तक जेब में न रखें पद, अब हो सकता है संगठन के पदों में चेंज

 भोपाल

मांडू के प्रशिक्षण वर्ग के बाद अब संगठन में उन नेताओं के काम में बदलाव हो सकते हैं जो दस-दस साल से पदों पर जमे हैं और नए कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का मौका नहीं दे रहे हैं। इसके साथ ही पार्टी ने चुनावी साल में संगठनात्मक दौरों पर भी जोर दिया है। 

तीन दिन तक चले प्रशिक्षण में बीजेपी के जिला अध्यक्षों, जिला प्रभारियों, मोर्चा-प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्षों, प्रदेश पदाधिकारियों को सबसे अधिक झटका पार्टी के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने दिया था। जामवाल ने पार्टी के उन पदाधिकारियों पर तंज कसते हुए नसीहत दी थी जो दस-दस साल तक पदों पर जमे रहते हैं और किसी नए कार्यकर्ता को आगे नहीं बढ़ने देते। इसी कारण दस-दस साल तक काम करने वाले चार छह लोग ही दिखाई देते हैं, नए कार्यकर्ता सामने नहीं आ पाते। जामवाल ने साफ तौर पर कहा कि पद जिसकी जेब में आ जाता है वह उसे जेब से निकलने नहीं देना चाहता जबकि समय समय पर इसमें बदलाव होना चाहिए। पद पर बैठने वाले नए कार्यकर्ताओं को न तो कुछ सिखाते और न सीखने का मौका ही देते हैं। ऐसे में संगठन का विस्तार कैसे हो सकता है? उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि कार्यकर्ता तो बहुत हैं लेकिन उन्हें काम नहीं दिया जा रहा है। नए कार्यकर्ताओं को सिखाने और आगे लाने का काम जिम्मेदार पदों पर बैठे पदाधिकारियों को करना चाहिए। नए कार्यकर्ताओं को संगठन की कार्यपद्धति के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दिए जाने के लिए काम करना होगा, तभी संगठन का विस्तार हो सकेगा। उन्होंने कहा था कि पार्टी के जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं, जिला अध्यक्षों को संवाद, संपर्क, दौरे बढ़ाने होंगे। सभी को कार्यालय आने वाले के आतिथ्य का ध्यान रखने के साथ व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा। 

उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण का आशय यह नहीं है कि मैं बोलूं और आप सुनते रहें। यदि हम इस प्रशिक्षण वर्ग के साथ न्याय करना चाहते हैं, तो इसकी सार्थकता तभी है, जब आप बोलें और मैं सुनूं। हमारे इस प्रशिक्षण की सार्थकता तभी है जब प्रत्येक कार्यकर्ता यह आत्मविश्लेषण करे कि इन परिवर्तनों और बदलावों के बीच मैं कहां पर खड़ा हूं। क्या मुझमें वो सारे गुण हैं, जिनकी अपेक्षा एक कार्यकर्ता से की जाती है?   जामवाल ने कहा कि पार्टी के जो कार्यक्रम होते हैं, उनसे पार्टी का विस्तार तो होता ही है, नए कार्यकर्ता भी तैयार होते हैं। इन कार्यक्रमों से जुड़कर कार्यकर्ता अपना विकास करते हैं। हम जो आंदोलनात्मक या जागरूकता के कार्यक्रम लेते हैं, उनसे कार्यकर्ताओं में मूल्यों का विकास होता है। यदि हमें लगातार कार्यकर्ताओं को तैयार करना है, तो हर बार नए कार्यकर्ताओं को इनसे जोड़ना होगा। प्रशिक्षण में उनकी नसीहत के बाद अब संगठन में कुछ पदों में बदलाव के संकेत मिले हैं।


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