आज आप कोई भी अखबार उठाइए या टीवी का न्यूज चैनल उस पर लगातार मणिपुर को लेकर रोज खबर रहती है। न्यूज चैनलों पर गरम- गरम बहस मणिपुर को लेकर हो रही है। ऐसा लग रहा है कि पूरे देश में सिर्फ घटनाएं मणिपुर में हो रही हैं। मणिपुर पर चर्चा जरूर होना चाहिए और वहां सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए और जो घटनाएं मणिपुर में हो रही है उस पर तुरंत रोक लगना चाहिए पर आश्चर्य इस बात पर होता है कि लोकसभा में केंद्र सरकार मणिपुर पर चर्चा करना चाहती है पर विपक्ष चर्चा नहीं कर रहा है। ऐसा क्यों? क्योंकि मणिपुर आज से नहीं जल रहा, यहां कांग्रेस के राज में अक्सर हिंसा के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो जाती थी। यहां बगावत, आतंकवाद, स्थानीय समुदाय के बीच झगड़े वर्षों से चल रहे हैं।
भाजपा को कांग्रेस से एक अस्थिर और बुरी तरह विभाजित राज विरासत में मिला जब सदन में चर्चा होगी तो हर विषय पर चर्चा होगी जिसमें कांग्रेस का असली चेहरा देश के सामने आएगा। यह कांग्रेस पार्टी नहीं चाहती और मणिपुर पर सदन में चर्चा नहीं करना चाहती। मणिपुर के साथ पश्चिम बंगाल पर बात क्यों नहीं होती? लोकतंत्र को बचाने के लिए लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए देश में चुनाव होते हैं। अभी पश्चिम बंगाल में पंचायत स्तर के चुनाव हुए थे जिसमें भारी हिंसा हुई और लगभग 21 लोगों ने अपनी जान से हाथ धोया। सिर्फ इसलिए कि वह या तो चुनाव लड़ना चाहते थे अथवा वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ थे। उनका इतना सा गुनाह था कि वह तृणमूल पार्टी के खिलाफ थे। तृणमूल के उम्मीदवार खिलाफ 2 महिलाओं ने चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाई तो उनको निर्वस्त्र करके पूरे गांव में जुलूस निकाला गया और उनके साथ अमानवीय कृत्य किए गए। उनके वीडियो सामने नहीं आए क्योंकि जो लोग ऐसा कृत्य कर रहे थे उनके हाथों में बंदूक थी और सरकार द्वारा उनको पोषण दिया जा रहा था।
कुछ दिन पूर्व एक दलित युवा को मार कर खंबे से उल्टा लटका दिया गया। उसका गुनाह यह था कि वह भारतीय जनता पार्टी का समर्थक था। भारतीय जनता पार्टी का समर्थक दलित- दलित नहीं रहता क्या ? यह यक्ष प्रश्न आज मौजूद है। दलितों के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले इस बात का जवाब जरूर दें कि वह गरीब दलित को मार कर खंबे से उल्टा लटका दिया गया पर पूरे देश में कहीं भी कोई हलचल नहीं हुई क्योंकि वहां ममता बनर्जी का राज है जो विपक्ष की झंडा वर दार है। कुछ दिन पूर्व एक मासूम नाबालिग दलित बेटी को दिल्ली में बेरहमी से चाकुओं से गोद के मार दिया गया और उसके ऊपर बड़ा सा पत्थर पटका गया पर इस घटना पर न कोई रावण पहुंचा और न ही लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा देने वाली प्रियंका वाड्रा पहुंचीं क्योंकि मारने वाला एक विशेष कोम का था।
यह दो मुंही राजनीति कब तक इस देश में चलती रहेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। हम भी अपनी जिंदगी की आपाधापी में जो दिखाया जा रहा है जो पढ़ाया जा रहा है उसको सत्य मान कर कुछ समय चर्चा कर भूल जाते हैं। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि 21 मासूमों ने पश्चिम बंगाल में अपनी जान से हाथ धो लिया और दो मासूम बहनों को निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाया गया, उसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जो खुद एक महिला है वह कहती हैं पश्चिम बंगाल की बात न करो, मणिपुर की बात करो। जिनसे अपने प्रदेश नहीं संभाले जा रहे, वह दूसरे प्रदेशों पर टिप्पणी कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा चुनाव से पूर्व पश्चिम बंगाल में केंद्रीय सुरक्षा बल उपलब्ध कराया था जिसके खिलाफ ममता बनर्जी कोर्ट में गई थी और कहा था कि केंद्रीय बल की आवश्यकता पश्चिम बंगाल में नहीं है। चुनाव में हिंसा का इतिहास पश्चिम बंगाल का कितना पुराना है, यह किसी से छुपा नहीं है। इस पर कोर्ट ने ममता बनर्जी को चुनाव में होती हिंसा के बारे में कहा और केंद्रीय बल को पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव लगाने के लिए कहा पर ममता सरकार ने चुनाव में केंद्रीय वालों को नहीं लगाया क्योंकि हिंसा का जो नंगा नाच चुनाव में तृणमूल पार्टी के गुंडे खुलेआम करते हैं उन्हें स्थानीय पुलिस रोकती नहीं है और उनका समर्थन करती है।
केंद्रीय बल अगर वहां चुनाव ड्यूटी पर लग जाता तो खुलेआम हो रही हिंसा और अत्याचार पर रोक लग जाती और कहीं न कहीं मासूमों की जो जान गई है वह बच जाती। इन मासूम 21 लोगों की हत्या और बहनों पर अत्याचार की जवाबदारी पूर्णता राज्य सरकार की है जिसकी मुखिया ममता बनर्जी हैं। वह अपनी जवाबदारी से मुंह फेर कर मणिपुर पर अपना ज्ञान बांट रही हैं। पश्चिम बंगाल में कई गांव जला दिए गए कई घर जलाए गए। कई बच्चे अनाथ हो गए, कई महिलाओं ने अपनी अस्मत को खोया और यह घटनाएं लगातार वहां जारी हैं पर इस पर बात करना मना है क्योंकि वहां विपक्ष के झंडा बर दार ममता का राज है।
(लेखक मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं।)
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