भोपाल
नॉन एसएएस को आईएएस बनाने के लिए जीएडी कार्मिक द्वारा दिल्ली भेजी गई सूची पर कई अधिकारी
खुलकर सरकार के खिलाफ सामने आ गए हैं। इन अफसरों ने जीएडी कार्मिक द्वारा तय मापदंडों और सूची में भेजे गए नामों के विरुद्ध हाईकोर्ट में आवेदन लगाया है। साथ ही मुख्य सचिव और जीएडी सचिव को भी अभ्यावेदन देकर भेजी गई सूची पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।
आईएएस के पद पर नान एसएएस के रूप में भरे जाने वाले पदों को लेकर गहराए विवाद में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वालों वे ही अफसर शामिल हैं जिनका नाम जीएडी ने अंतिम दौर तक सूची में शामिल रखा था पर दिल्ली पहुंची सूची में उनका नाम गायब था। जिन अफसरों ने इस मामले में कोर्ट की शरण ली है, उनमें आबकारी विभाग के संजीव दुबे, नरेश चौबे, वित्त विभाग के वीरेंद्र कुमार, ग्रामीण विकास विभाग के पीसी शर्मा समेत अन्य अधिकारी शामिल हैं। हाईकोर्ट में दिए गए आवेदन में इस मामले में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। इसके लिए आठ साल की फील्ड पोस्टिंग और डिप्टी कलेक्टर के समकक्ष पद व वेतनमान को आधार बनाकर चुनौती दी गई है कि सरकार द्वारा जिनके नाम भेजे गए हैं, वे उन मापदंडों को पूरा नहीं करते। सिर्फ ऐसे लोगों के नाम भेजे गए जो लंबे समय से राजधानी में ही पदस्थ हैं और मंत्रियों के स्टाफ के सदस्य रहे है। सूत्रों का कहना है कि सरकार के कुछ अफसरों ने भी माना है कि भेजी गई सूची में कई नाम गलत शामिल हैं पर अभी तक इस मामले में कुछ बदलाव नहीं किया गया है। इधर इसी मामले में राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों का कहना है कि जिन अफसरों को चयनित किया गया है, उनका पद नोटिफिकेशन द्वारा डिप्टी कलेक्टर के समकक्ष घोषित नहीं किया गया है। जिनका अफसरों का नाम भेजा गया है, उनके आवेदन के साथ एक अलग से सर्टिफिकेट लगाकर डिप्टी कलेक्टर के समकक्ष बताने की कोशिश की गई है। सूत्र बताते हैं कि जिन अधिकारियों के नाम भेजे गए हैं, उनमें से कुछ तृतीय श्रेणी के कर्मचारी भी शामिल हैं।
आठ साल में चार पद ही क्यों
अफसरों का सवाल है कि नॉन एसएएस के अफसरों के लिए आठ साल से चार पद रिक्त बताए जा रहे हैं, जबकि केन्द्रीय कार्मिक विभाग द्वारा तय नियमों के अनुसार यह संख्या हर साल होने वाली आईएएस की डीपीसी में एसएएस के लिए स्वीकृत पदों की संख्या का 15 प्रतिशत होना चाहिए। इनका कहना है कि नान एसएएस के पदों की संख्या हर साल साफ होनी चाहिए। आठ साल पहले अगर चार पद स्वीकृत थे और अब इन पदों की संख्या अधिक होनी चाहिए। इसका सीधा मतलब है कि सीनियर अफसर और मंत्री अपने करीबियों को लाभ दिलाने के लिए काम कर रहे हैं।
जो पात्र थे वे अब अपात्र कैसे हो गए
अफसरों का यह भी कहना है कि अगर सरकार की नीति सही होती तो जिन अधिकारियों को पूर्व के वर्षों में सूची में शामिल किया जाता रहा है, उन्हें इस बार शामिल क्यों नहीं किया गया। वे अब किस आधार पर पात्र हो गए। भोपाल से बाहर पदस्थापना होने के कारण क्या उनकी आउटस्टैंडिंग परफार्मेंस में कमी आई है। गौरतलब है कि पूर्व के वर्षों में नगरीय विकास विभाग में पदस्थ जगदीश सिंह, राजीव निगम, तकनीकी शिक्षा विभाग से बीआर विश्वकर्मा, शमीमुद्दीन, वित्त विभाग से वीरेन्द्र कुमार, मिलिंद वाईकर, उच्च शिक्षा विभाग से नितिन नंदगांवकर समेत अन्य अधिकारियों के नाम भेजे जाते रहे हैं पर इस साल भेजी गई सूची में इनका नाम नहीं है।
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