मैं जापान का रहने वाला हूं, जापान में पैदा हुआ पर हिन्दी से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि कुछ सालों के लिए हिन्दी सीखने हिन्दुस्तान आ गया। वापस अपने देश पहुंचा तो हिन्दी का प्रचार करने लगा और जापान के लोगों को हिन्दी पढ़ाने लगा पर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने मेरी तौहीन कर दी। मुझसे आर्टिकल मांग लिया पर बुलाया नहीं। अब मैं आ गया हूं तो सम्मेलन में शामिल होकर ही जाउंगा, भले ही मुझे बोलने का मौका नहीं मिले।
यह कहना है जापानी हिन्दी प्रोफेसरतोमियो मिजो गामी का। लाल परेड मैदान पर बनाए गए हिन्दी सम्मेलन स्थल पर संवाददाता से बातचीत करते हुए तोमियो ने कहा कि वे अब तक चार हिन्दी सम्मेलन में शामिल हो चुके हैं। यह उनके लिए पांचवां हिन्दी सम्मेलन है। निश्चय तौर पर यह पूर्व में हुए सभी सम्मेलनों से आधुनिक और बेहतर है पर सरकार की व्यवस्था नकारा हैं। तोमियो ने कहा कि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने इंट्रानेट के माध्यम से 1000 शब्दों का आर्टिकल मांगा था जो मैने दिया। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने न तो यह बताया कि मुझे आना है और न यह जानकारी दी कि नहीं आना है। लिहाजा मैं हिन्दी सम्मेलन में शामिल होने के लिए जापान से दो दिन पहले दिल्ली आ गया। यहां आया तो भी पता नहीं चला कि सम्मेलन के आमंत्रितों में मेरा नाम नहीं है। तोमियो बताते हैं कि इसके चलते मैं दिल्ली से आज शाम को भोपाल आ गया। यहां आकर सम्मेलन स्थल पहुंचा तो पता चला कि आमंत्रितों में मेरा नहीं है।
अफसरों का अफसरों के लिए सम्मेलन
तोमियो के मन में व्यवस्था को लेकर इतना आक्रोश है कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि यह सम्मेलन अफसरों का अफसरों के लिए हैं। फर्राटा हिन्दी बोलने वाले तोमियो ने कहा कि भोपाल आने के बाद उन्होंने जापान के उच्चायुक्त से बात की। उनके कहने पर उनको होटल में रुकने और आने जाने के लिए गाड़ी मिली है पर भारत सरकार ने इसे अनदेखा कर दिया। उन्होंने कहा कि वे पूरे टाइम तक यहां रहेंगे। पूर्व में हुए हिन्दी सम्मेलन में शामिल हुए मित्रों से मिलने का मौका तो मिलेगा ही, भले ही वे हिन्दी के प्रचार प्रसार को लेकर जापान में जगाई जा रही अलख पर अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाएं।
फिल्म 420 का हिन्दी में अनुवाद कर चुके
जापान के रिटायर्ड प्रोफेसर तोमियो मिजो गामी फिल्म 420 का हिन्दी में अनुवाद कर चुके हैं।इसके अलावा जापानी छात्रों को हिन्दी सिखाने के लिए उन्होंने रामानंद सागर के सीरियल रामायण की पूरी पटकथा तैयार की और इसके माध्यम से लोगों को हिन्दी संस्कृति का अहसास कराया।
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