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बागड़ ही खेत खाएगी तो उसे कौन बचाएगा: राकेश शर्मा

कल एक दिल दहलाने वाली घटना हमारे सामने आई। एक हिंसक पशु ने एक मासूम जिसने दुनिया देखना अभी शुरू किया उसे जीवन भर न भूलने वाले जख्म  दिए। उस निर्दयी ने उस मासूम की उम्र को भी नहीं देखा और उसके साथ इस घटना में उसकी सहयोगी बनी बस में साथ चलने वाली आया जिसकी जवाबदारी उन मासूमों की देखभाल करना और उन्हें सुरक्षित घर पहुंचाना थी। घटना के बाद प्रशासन ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। प्रशासन ने उस नर पशु का घर तोड़ दिया। फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामला चलेगा और उस नर पशु को सजा हो जाएगी।
 4 दिन बाद हम इस विषय पर चर्चा भी नहीं करेंगे पर सोचने का विषय यह है कि जिस तरह से स्कूल प्रशासन अपने स्कूल की रेपुटेशन बचाने के लिए इस पूरे विषय पर पर्दा डालने का प्रयास कर रहा था, क्या वह दोषी नहीं है? सुप्रीम कोर्ट की सीसीटीवी गाइडलाइन का पालन स्कूल प्रशासन द्वारा नहीं किया गया। इसके लिए कौन दोषी है? लगातार मां-बाप को और प्रशासन को गुमराह करने का जिस प्रिंसिपल द्वारा प्रयास किया गया क्या उसको भी साक्ष्य मिटाने और प्रशासन को गुमराह करने के मामले में जिम्मेदार ठहराया जाएगा? बिना जांच के ड्रायवर और आया को क्लीन चिट देना क्या दर्शाता है? हम सभ्य समाज होने का दावा करते हैं। इस पूरी घटना में कहीं से भी मानवीय पहलू कहीं नजर आ रहा है। यह पहली घटना नहीं है जो हमारे समाज पर कलंक की तरह दर्ज हो गई। इससे पूर्व कई घटनाएं जो हमें बार-बार सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं। हमें कचोटती हैं कि हमारा समाज कहां जा रहा है और क्या कर रहा है? कुछ दिन पूर्व एक घटना सामने आई थी जिसमें माता-पिता ने अपने मासूम को पड़ोसी के यहां छोड़ा क्योंकि उन्हें कुछ देर के लिए बाजार जाना था, उस पड़ोसी हैवान ने अपनी पत्नी के सामने उस मासूम के साथ हैवानियत की। उस मासूम के दिनभर अंकल अंकल कहते हुए होठ थकते नहीं थे और उस पड़ोसी अंकल ने जीवन भर का नासूर उस मासूम बच्ची को दे दिया। कुछ दिन पूर्व एक घटना और हमारे सामने आई थी, जिसमें मामा और नाना सुबह शाम बारी-बारी से मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म कर रहे थे। गांव में रहने वाले उसके मां बाप ने अपनी मासूम बच्ची को नाना के घर पढ़ने भेजा था। हम लगातार शासन प्रशासन पर उंगली उठाते हैं कि इस तरह की घटना पर उसे रोक लगाना चाहिए पर मेरे प्रश्न का जवाब मुझे कहीं नहीं मिल रहा कि अगर बागड़ ही खेत को खाएगी तो उस खेत को कौन बचाएगा जिन लोगों के हाथ में इन मासूमों का जीवन सुरक्षित रहने की जवाबदारी है। अगर वही  हैवानियत पर उतर आए तो हमारे सभ्य समाज का होने का दावा धरा का धरा रह जाएगा। कई बार घटनाओं को सुनकर हमारा कलेजा काम जाता है। कभी पिता अपनी बेटी के साथ कभी भाई अपनी बहन के साथ दुष्कर्म कर रहा है और हम शासन प्रशासन को कोस कर अपनी जवाबदारी की इतिश्री कर लेते हैं। पूर्व में यह देखने में आता था कि एक बिटिया पूरे गांव की बिटिया होती थी। उसके पालन-पोषण से लेकर उसके विवाह की जवाबदारी पूरा गांव निभाता था। अगर मां-बाप गरीब हैं तो किसी के घर से आटा किसी के घर से सब्जी किसी के घर से शक्कर, इस तरह सामान इकट्ठा कर पूरा गांव बिटिया की शादी करता था। यह सब आधुनिकता की चकाचौंध में कहीं खो हो गया। आज पड़ोसी को पड़ोसी से मतलब नहीं है। हम भागे जा रहे हैं पर कहाँ यह किसी को पता नहीं है। मनुष्यता, सभ्यता, प्रेम, भाईचारा एक दूसरे का सहयोग, एक दूसरे की चिंता जो एक ईश्वर का वरदान है, वह खत्म होती जा रही है और इसके लिए दोषी कौन है?इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। सजा या दंड यह किसी समस्या का हल नहीं है। अगर थोड़ी सी भी मानवता बची है तो हम अपने मूल्यों की रक्षा करें, इसका प्रण करें और मनुष्यता और अपने समाज को बचाने के लिए कठोर कदम उठाएं तभी हमारी आने वाली पीढ़ी सुरक्षित रह सकती है।

(लेखक मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं)
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