राहुल गांधी की यात्रा एक इवेंट बनकर रह गई है। यात्रा का उद्देश्य किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है। कांग्रेस नेताओं द्वारा कहा जा रहा है कि यह यात्रा भारत जोड़ने के लिए है पर यात्रा शुरुआत से ही विवाद में घिर गई है। केरल जहां से यात्रा शुरू हुई, राहुल गांधी एक बिशप से मिलने गए जो पूरे देश में विवाद का विषय बना हुआ है। बिशप द्वारा भारत माता को डायन कहना और हिंदू देवी देवताओं का अपमान करना जो किसी के गले नहीं उतर रहा, ऐसे में सिर्फ वोट की राजनीति के लिए राहुल गांधी उस विवादित बिशप से मिलने गए। कर्नाटक में यात्रा के दौरान कार्यकारी कांग्रेस अध्यक्ष जार्की होली का हिंदुत्व पर विवादित बयान समझ से परे था। इसकी क्या आवश्यकता थी और इस बयान से कांग्रेस पार्टी या देश की जनता को क्या लाभ प्राप्त हो रहा है? बयान आने के बाद कांग्रेस बयान से पल्ला झाड़ लेती है और यह कहना कि वह नेता का व्यक्तिगत बयान है। ऐसे में अपने नेता जो विवादित बयान देता है उसके खिलाफ कोई किसी भी तरह की कार्यवाही कांग्रेस नहीं करती, समझ से परे है।
कहीं न कहीं देश की बहुसंख्यक जनता के मन में ऐसे बयानों से पीड़ा होती है। यात्रा प्रारंभ होने के बाद कांग्रेस के कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं। चाहे गुलाम नबी आजाद हो या गुजरात के वरिष्ठ कांग्रेस नेता विधायक राठवा हों। यात्रा प्रारंभ होने के बाद 6 राज्यों में 7 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए जिसमें से 4 स्थानों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जीते जो सीट कांग्रेस की थी। वहां भाजपा उम्मीदवार जीता और कांग्रेस के उम्मीदवार की जमानत जब्त हुई। एक तरफ राजस्थान कांग्रेस में जो उठापटक चल रही है वह किसी से छुपी नहीं है। यात्रा में लगातार विवादित व्यक्तियों के साथ राहुल के फोटो वायरल हो रहे हैं। चाहे टुकड़े टुकड़े गैंग का प्रतीक कन्हैया कुमार हो या सरदार सरोवर बांध के निर्माण में लंबे समय तक अड़ंगा लगाने वाली मेधा पाटकर हो। सरदार सरोवर बांध की आवश्यकता गुजरात की जनता को कितनी थी, यह किसी से छुपा नहीं था। पीने के पानी को तरसती जनता, साथ ही सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता की पूर्ति सरदार सरोवर बांध से हो सकती थी पर उस पर लगातार रुकावट पैदा करने का काम किया गया। बिशप हो या जर्की होली के विवादित बयान या विवादित नेताओं के साथ फोटो से बचा जा सकता था। महाराष्ट्र में यात्रा के समय वीर सावरकर पर पत्रकार वार्ता करना जो सावरकर एक दशक तक काले पानी की सजा भोगते रहे, उन्हें वहां कोल्हू के बैल की तरह जोता गया, जिन्हें अंतहीन पीड़ा दी गई, जो पूरे महाराष्ट्र में पूजे जाते हैं, ऐसे वीर सावरकर पर पत्रकार वार्ता कर यात्रा के प्लानर यहां बड़ी चूक कर गए। यात्रा के बीच कंधे पर बकरा रखकर चलना या पीठ पर कोड़े मारना, दौड़ कर बस के पीछे से चढ़ना, कुछ देर के लिए लोगों का मनोरंजन तो कर सकता है पर राहुल की छवि बदलने का जो प्रयास हो रहा है, इनसे वह संभव नहीं है। यात्रा का असर कहीं दिखाई नहीं दे रहा। यात्रा चल रही है, कांग्रेस टूट रही है और चुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त हो रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? यह कांग्रेस नेतृत्व को विचार करना चाहिए, इतने बड़े इवेंट का जनता पर कोई असर नहीं हो रहा। साथ ही यात्रा अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रही। यह बड़ा सोचनीय विषय है। कांग्रेस के नीति निर्धारकों के लिए पूरे देश से कांग्रेस नेताओं को बुलाकर यात्रा में भीड़ इकट्ठा करना और निकलती यात्रा को देखने आते लोगों को अपनी सफलता मानना कहीं न कहीं इससे कांग्रेस नेतृत्व आत्ममुग्ध हो रहा है जो कांग्रेस के भविष्य के लिए ठीक नहीं है।
(लेखक भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं)

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