देश में वंशवाद और परिवारवाद एक अभिशाप बन गया है जिसको मजबूरी में देश की जनता भोगने के लिए मजबूर है। विपक्ष की पार्टियां वंशवाद और परिवारवाद की मिसाल बन गई हैं। देश में एक भी ऐसा विपक्षी दल नहीं बचा जो इस विष बेल को बढ़ाने में अपना योगदान नहीं दे रहा हो। वंशवाद और परिवारवाद की जननी कांग्रेस पार्टी है, नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक इसके उदाहरण हैं। जवाहरलाल नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी, इंदिरा गांधी की बाद उनका बेटा राजीव गांधी, राजीव गांधी के बाद उनकी पत्नी सोनिया गांधी, सोनिया गांधी के साथ उनका बेटा राहुल गांधी, राहुल गांधी के साथ उनकी बहन प्रियंका वाड्रा और आने वाले समय में प्रियंका वाड्रा के पुत्र और पुत्री कांग्रेस की परंपरा, वंशवाद और परिवारवाद को आगे बढ़ाएंगे।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ देश में एक अलख जगाई है जो एक क्रांति का रूप ले रही है और देशवासियों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि कब तक यह परिवार, पार्टियों जो लिमिटेड कंपनियों की तरह चल रही हैं और उन्हें गुमराह कर उन पर राज कर रही हैं। एक परिवार, एक खानदान पूरी व्यवस्था पर हावी है, यह लंबे समय से दिखाई दे रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ यह रोग कांग्रेस में है। विपक्ष के दल समाजवादी पार्टी में पहले मुलायम सिंह यादव अब उनके बेटे अखिलेश यादव साथ ही अखिलेश यादव की धर्म पत्नी डिंपल यादव साथ ही परिवार का पूरा कुनबा राजनीति की रोटियां सेंक रहा है और जातिवाद और तुष्टिकरण की राजनीति कर किसी भी तरह सत्ता पर काबिज होना चाहता है। महाराष्ट्र में एनसीपी के प्रमुख शरद पवार अब बुजुर्ग हुए तो अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी सुप्रिया सुले को सौंपी। बिहार में लालू कुनबे के बारे में पूरा देश जानता है।
लालू प्रसाद के बाद रावड़ी देवी, राबड़ी देवी के बाद पुत्र तेजस्वी यादव, तेजस्वी यादव के साथ तेज प्रताप यादव, मीसा भारती परिवारवाद वंशवाद की बेल को आगे बढ़ा रहे हैं। दक्षिण के राज्य में करुणानिधि के बाद उनके बेटे स्टेलिन और उनकी बहन -भाई और कई रिश्तेदार सत्ता के प्रमुख पदों पर बैठे हुए हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और उनकी सल्तनत उनका भतीजा अभिषेक बैनर्जी संभाल रहा है। ऐसे और भी कई उदाहरण हमारे सामने हैं जिनके बारे में देश की जनता बेहतर रूप से जानती है। क्या इन पार्टियों में और कोई काबिल व्यक्ति नहीं है? पर यह सब हमें उस समय की याद दिलाते हैं जब देश में राजा महाराजाओं का राज्य था कि राजा के बाद राजकुमार राज्य की गद्दी पर राजा के रूप में सुशोभित होगा।
लोकतंत्र में यह जो परिवार तंत्र हावी हुआ है इससे मुक्ति पाने का समय आ गया है। देश की जनता को अब एक बार तय करना पड़ेगा कि इनसे हमें मुक्ति पाना है तो बड़ी आसानी से इनसे मुक्ति पाई जा सकती है कई काबिल और सेवाभावी कार्यकर्ताओं की बलि इस वंशवाद की राजनीति की भेंट चढ़ गई है। यह वंशवादी और परिवार वादी यह तर्क देते हैं कि जब डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बन सकता है, आईएएस -आईपीएस का बेटा आईएएस, आईपीएस बन सकता है तो राजनीति में हमारा वंश और परिवारवाद क्यों नहीं चलेगा पर अति बुद्धिमान लोगों को यह कौन बताएगा कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर की परीक्षा पास कर कर अपनी मेहनत पर डॉ बनता है।
इसी तरह आईएएस, आईपीएस का बेटा आईएएस, आईपीएस की परीक्षा पास कर अपनी मेहनत और पढ़ाई से आईएएस, आईपीएस बनता है। कोई डॉक्टर या कोई आईपीएस या आईएएस अपने ही विरासत अपने बेटे को नहीं सौंपता, न शिक्षा और न ही काबिलियत पर वंशवाद और परिवारवाद की दम पर कोई मुख्यमंत्री बन रहा है तो कोई उपमुख्यमंत्री बन रहा है और देश की जनता ठगी हुई उसे देख रही है। राजनीतिक पार्टियों का गठन जनता की सेवा के लिए होता है पर अब देखने में आ रहा है कि यह अपने परिवार और अपनी वंशवाद को आगे बढ़ाने के लिए अपनी पार्टी और उससे जुड़े हुए हजारों लाखों कार्यकर्ताओं को दाँव पर लगाकर अपने खोटे सिक्के राजनीति के मैदान में चला रहे हैं।
अपना लेवल लगाकर आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इन खोटे सिक्कों को अब चलन से बाहर करना हमारी जवाबदारी है जिसे हमें निर्वहन करना ही पड़ेगा और इस देश को वंशवाद और परिवारवाद की विष बेल को जड़ से उखाड़ फेंकना का समय आ गया है और इससे देश को बचना पड़ेगा। वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ जो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्रांति की मशाल उठाई है उसकी लौ को बुझने नहीं देना है। हमें कंधे से कंधा मिलाकर देश को मजबूत करने के लिए अब आगे आना पड़ेगा। वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ हो रही क्रांति में अपना एक छोटा सा योगदान देकर इससे देश का भविष्य उज्जवल बनाने में हमारा भी योगदान होगा।

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