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15 करोड़ मजदूर हड़ताल पर: दिल्ली में ऑटो, बिहार-बंगाल में रोकी गईं ट्रेनें

नई दिल्ली: लेबर पॉलिसी में होने जा रहे बदलाव के खिलाफ देश के 10 यूनियनों के 15 करोड़ कर्मचारी-मजदूर बुधवार को हड़ताल पर हैं। इससे बैंकिंग, ट्रांसपोर्ट जैसी सर्विसेज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। दिल्ली में ऑटो रिक्शा और टैक्सियों की हड़ताल की वजह से लोग बेहद परेशान नजर आए। बसों में यात्रियों की ठसाठस भीड़ दिखी। राजधानी में स्ट्राइक में शामिल न होने वाले रिक्शेवालों से मारपीट की खबरें भी हैं। 
 
कई राज्यों में असर
>पश्चिम बंगाल में भी बंद का असर नजर आया। बंद का सपोर्ट कर रहे लेफ्ट और सत्ताधारी तृणमूल के कार्यकर्ताओं के बीच कुछ जगह संघर्ष हुआ। वहीं, पुलिस की लाठीचार्ज में एक महिला घायल हो गई। यहां प्रदर्शनकारियों ने नॉर्थ 24 परगना जिले में कुछ ट्रेनें रोक दीं। हावड़ा में भी अधिकतर फैक्टरियां बंद रहीं। मुर्शिदाबाद में बंद के दौरान प्रदर्शन कर रहे सीपीएम और तृणमूल कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए।
>बंद का असर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी नजर आया।
>बिहार के आरा में भी ट्रेन रोकी गई।
>तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में बंद का कुछ असर नजर आया। हालांकि, दक्षिणी जिले में कोई असर नहीं। तमिलनाडु स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन ने बसें चलाना जारी रखा। तिरुवर जिले में रेल रोकने की कोशिश कर रहे कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया।
>केरल में सरकारी और प्राइवेट बस, टैक्सी और ऑटोरिक्शा नहीं चले। कुछ प्राइवेट कारें और टू व्हीलर्स ही रोड पर दिखे। दुकानें, होटल, यहां तक चाय के दुकान भी बंद रहे।
>तेलंगाना में आम लोगों के लिए ट्रांसपोर्ट की लाइफलाइन माने जाने वाले आरटीसी बस नहीं चलीं। बंद में ऑटोड्राइवर भी शामिल हुए।
>लेफ्ट प्रभावित त्रिपुरा में बंद का खासा असर। बैंक, मार्केट, ट्रांसपोर्ट, स्कूल, कॉलेज सभी बंद रहे।

कौन सी प्रमुख डिमांड
यूनियनें कुल 12 मांगों को लेकर यह प्रदर्शन कर रही हैं
>सरकार लेबर लॉ में जो बदलाव करने जा रही है, वे न किए जाएं।

>मिनिमम सैलरी 15 हजार रुपए किया जाए।

>पीएसयू में सरकारी हिस्सेदारी बेचने (डिसइन्वेस्टमेंट) और इसे निजी हाथों में सौंपने पर रोक लगे।
>महंगाई रोकने की तत्काल कोशिश करे सरकार।

>सभी वर्करों को सोशल सिक्युरिटी कवर के दायरे में लाया जाए।

>बेसिक लेबर लॉ को कड़ाई से लागू किया जाए।

>वर्करों के लिए पेंशन में इजाफा किया जाए।

>बोनस और पीएफ की लिमिट बढ़ाई जाए।

>रेलवे और डिफेंस में एफडीआई पर रोक लगे।

>ट्रेड यूनियनों का 45 दिन के अंदर कंपलसरी रजिस्ट्रेशन हो।
>बेरोजगारी से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं और नई नौकरियां पैदा की जाएं।
>कॉन्ट्रैक्ट वर्करों को भी रेगुलर वर्करों की तरह सैलरी और बेनिफिट्स मिले।
क्या कहना है समर्थन कर रहे नेताओं का
>कांग्रेस नेता पीसी चाको ने कहा कि ट्रेड यूनियनें गंभीर हालात का सामना कर रही हैं। पिछली प्रोग्रेसिव सोच वाली सरकारों के लेबर लॉ को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।
>लेफ्ट लीडर और AITUC (ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस) के जनरल सेक्रेटरी गुरदास दासगुप्ता ने कहा कि लोग सरकार की एंटी वर्कर पॉलिसी से नाराज हैं। सरकार के कर्मचारियों को यूनियन बनाने के अधिकार देने में की जा रही आनाकानी के विरोध में यह आंदोलन है। 
 
आरएसएस समर्थित बीएमएस बंद में नहीं है शामिल
हड़ताल में मुख्य रूप से भारतीय ट्रेड यूनियन (सीटू) और आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (आईटक) शामिल हैं। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ा श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ(बीएमएस) और रेलवे इसमें हिस्सा नहीं ले रहा है। बीएमएस का कहना है कि वह यूनियनों की मांग से सहमत है, लेकिन सरकार को इस पर काम करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए। 
 
क्या कहना है सरकार का
लेबर मिनिस्टर बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि बंद का असर बेहद सीमित होगा। लेबर मिनिस्ट्री का कहना है कि वह संगठनों की सभी मांगों पर गंभीरता से विचार कर रहा है। हड़ताल की कोई वजह नहीं थी क्योंकि संगठनों की 12 में से नौ मांगों पर रजामंदी करीब-करीब बन चुकी है। मिनिमम सैलरी से जुड़े कानून में खासतौर पर बदलाव किए जाने की तैयारी है। मौजूदा समय में राष्ट्रीय स्तर पर वर्करों के लिए 160 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी तय की गई है। यदि कानूनों में बदलाव होता है तो मिनिमम सैलरी की यह रकम बढ़कर 273 रुपए हो जाएगी।
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