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600 करोड़ रुपए के टैक्स की मार से नहीं बच पाई बिजली

वाणिज्यिक कर विभाग को 870 करोड़ रुपए देगा ऊर्जा महकमा
 भोपाल
तमाम विरोध के बाद भी कोयले पर एंट्री टैक्स की कम कीमत चुकाने की बिजली महकमे की कोशिश नाकाम
हो गई। अब बिजली महकमा वाणिज्यिक कर विभाग को तीन किश्तों में 600 करोड़ रुपए से अधिक की रकम चुकाएगा। इतना ही नहीं टैक्स की अदायगी करने की बिजली कम्पनियों की कार्रवाई के बाद वाणिज्यिक कर विभाग के पास एनटीपीसी से भी 200 करोड़ रुपए आने का रास्ता साफ हो गया है। इसका फैसला हाईकोर्ट के आदेश के बाद हुआ है।

हाईकोर्ट जबलपुर में 31 अगस्त को ऊर्जा विभाग और वाणिज्यिकर विभाग के एंट्री टैक्स विवाद मामले में
सुनवाई थी। इसमें कोर्ट ने  आदेश दिया है कि कोयले पर जो भी टैक्स वाणिज्यिकर कर विभाग लगाएगा, उसका भुगतान तीन फेज में ऊर्जा विभाग करेगा। यह राशि वाणिज्यिक कर विभाग को 5 प्रतिशत टैक्स के रूप में मिलेगी। कोर्ट ने यह फैसला दोनों विभागों के मंत्रियों की ओर से इस मामले में बैठक करके आपसी सहमति बनाने की सूचना देने के बाद किया है। सूत्रों ने बताया कि बिजली कम्पनियां 600 करोड़ रुपए से अधिक की राशि इसके बाद चुकाएंगी। यहां गौरतलब है कि इस केस में वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा ऊर्जा विभाग और एनटीपीसी पर करीब 870 करोड़ रुपए की रिकवरी निकाली गई है। ऊर्जा विभाग को टैक्स चुकाने का आदेश जारी होने के बाद एनटीपीसी से भी राशि वसूली का रास्ता साफ हो गया है।

ऐसे चला पूरा केस
प्रदेश के दो महत्वपूर्ण विभागों वाणिज्यिक कर और ऊर्जा विभाग में कोयले पर लगने वाले एंट्री टैक्स को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। इस विवाद का निपटारा न होने पर ऊर्जा विभाग के अफसर हाईकोर्ट चले गए थे। हाईकोर्ट ने पहले दोनों विभागों के प्रमुख सचिवों को इस केस का निराकरण करने के लिए निर्देशित किया पर सहमति नहीं बन सकी। इसके बाद दोनों विभागों के मंत्रियों को बैठक कर केस का निराकरण करने के लिए कहा गया। ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला और वाणिज्यिक कर विभाग के मंत्री जयंत मलैया की बैठक के बाद इस मामले में सहमति बन सकी।

उत्पादन पर लिया जाता है टैक्स
सूत्रों का कहना है कि यह टैक्स बिजली उत्पादन करने पर वसूला जाता है। शासन द्वारा पहले 2 प्रतिशत टैक्स लेने का प्रावधान किया गया था पर 2007 में किए गए एक्ट परिवर्तन के बाद इसे बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। बाद में शासन ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए इसे घटाकर 2 प्रतिशत ही कर दिया था। बिजली पैदा करने वाली कम्पनियों का कहना है कि वे मैन्युफैक्चरिंग के दायरे में आते हैं जबकि विभाग का कहना है कि बिजली उत्पादन मैन्युफैक्चरिंग के दायरे में नहीं आता। इस कारण इन पर टैक्स निकाला गया है।
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