भोपाल
महिला सशक्तिकरण की दुहाई देने वाले राजनीतिक दलों में महिलाओं के नाम पर टिकट देने के बाद उनके पति और रिश्तेदार नेतागिरी कर रहे हैं। इस बार हो रहे नगरीय निकाय चुनाव में महिलाओं के बजाय उनके पति और परिजनों की नेतागिरी का विरोध भी होने लगा है और सोशल मीडिया पर इसको लेकर कमेंट भी किए जा रहे हैं। पत्नियों के नाम पर टिकट हासिल कर नेतागिरी कर रहे इन पतियों का हस्तक्षेप चुनाव के बाद महापौर के कामकाज में भी साफ दिखाई देगा क्योंकि ये सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप कर फाइलें खुद चलाने लगते हैं। ऐसे में हालात यह है कि राज्य सरकार द्वारा महिलाओं को पचास फीसदी आरक्षण देकर टिकट देने के बाद महिलाओं का प्रतिनिधित्व तो हो जाता है लेकिन कामकाज उनके परिजन ही संभालते हैं। यह स्थिति नगर निगम, नगरपालिका और नगर परिषद के पार्षद पद के प्रत्याशियों और इसके बाद नगर पालिका व नगरपरिषद अध्यक्ष पद के मामले में भी है।
देवास में पब्लिक ने किया विरोध
नगरीय निकाय चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर टिकट दिलाकर वरिष्ठ नेताओं द्वारा की जाने वाली नेतागिरी का विरोध भी हो रहा है। ताजा मामला देवास में सामने आया है जहां भाजपा से महापौर पद की प्रत्याशी गीता दुर्गेश अग्रवाल और कांग्रेस की प्रत्याशी विनोदिनी रमेश व्यास बनाई गई हैं। इन दोनों महिला कैंडिडेट की आमजन के बीच स्वयं की कोई खास पहचान नहीं है। अब पत्नियों के नाम पर दोनों ही प्रत्याशियों के पति नेतागिरी कर रहे हैं। ऐसे में यहां के लोगों ने दोनों ही महिला प्रत्याशियों के पतियों को सोशल मीडिया पर ट्रोल करना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया पर लोग महिला उम्मीदवारों की पात्रता और योग्यता को लेकर उनके पतियों पर तंज कस रहे हैं। लोगों ने महापौर प्रत्याशियोें के पतियों को साड़ी पहनाकर और हाथ में चूड़ियां डालकर उनका फोटो तक सोशल मीडिया पर डाल दिया है।
ग्वालियर, बुरहानपुर, खंडवा, कटनी में भी यही स्थिति
महापौर पद के लिए ग्वालियर, बुरहानपुर, खंडवा, कटनी, मुरैना, भोपाल नगर निगमों में भी यही स्थिति है। यहां महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर दोनों ही प्रमुख दलों ने नेताओं की पत्नियों और उनके परिजनों को टिकट दे दिया है। ये महिलाएं तो फील्ड में कम दिखाई देती हैं और जनता से उनका जुड़ाव भी न के बराबर है लेकिन उनके पति नेतागिरी कर रहे हैं। भोपाल में तो फिर भी स्थिति ठीक है क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी महापौर रह चुकी हैं और भाजपा प्रत्याशी पार्षद व सभापति रह चुकी हैं और शहर के लोग कुछ हद तक इन्हें पहचानते भी हैं लेकिन बाकी शहरों में महिला सशक्तिकरण के बजाय पति सशक्तिकरण नजर आ रहा है।
पंचायत चुनाव में भी नगरीय निकाय जैसी तस्वीर
महिला सशक्तिकरण की धज्जियां उड़ाने की जो स्थिति नगरीय निकाय चुनाव के मामलों में है, ठीक वैसी ही स्थिति पंचायत चुनाव के मामले में भी है। यहां भी महिला के सरपंच, जनपद सदस्य और जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित होने के बाद उनके पति ही सरपंच पति, जनपद सदस्य पति और जिला पंचायत सदस्य पति के अघोषित पद के रूप में सरकारी कामों में हस्तक्षेप करने लगते हैं।